आरजे कार्तिक की कहानी

बड़ी छोटी सी आरजे कार्तिक की कहानी जो जिंदगी में बहुत कुछ सिखा जाती है तो आज की इस आर्टिकल के माध्यम से हम आप सभी को मोटिवेशनल कहानी सुनने वाले हैं आप पढ़ने वाले हैं जो आपको आनंदित और मनोरंजित कर दें. साथ में आपको प्रेषित करें आगे बढ़ाने के लिए कामयाब होने के लिए तो चलिए बिना किसी देरी के आगे पढ़ते हैं और सुनते हैं आरजे कार्तिक को

प्रभु श्री राम के नाम के चमत्कार की कहानी | आरजे कार्तिक की कहानी

एक गांव के बाहर एक छोटी सी झोपड़ी में महात्मा जी रहते थे, उनकी झोपड़ी से कुछ ही दूरी पर एक और झोपड़ी थी जिसमें एक छोटा सा परिवार रहता था.

महात्मा जी दिन और रात राम जी के नाम की धुन लगा करके करके रखते थे, राम नाम ,राम नाम , राम नाम जपते रहते थे. ढोलक पर वह बड़ा ही कीर्तन किया करते थे.

वह जो पास वाले झोपड़ी में रहते थे उनको लगता था कि उन्हें डिस्टर्ब हो रहा है, उन्हें परेशानी हो रही है. एक दिन उसे रहा नहीं गया और दौड़ करके और बाबा जी से लड़ाई करने लगा. कि यह आप क्या दिनभर राम-राम जपते रहते हैं. क्या राम जी आपको भोजन देते हैं?,

उसे महात्मा जी ने कहा मुझे तो भोजन राम जी ही देते हैं.

उसे आदमी ने कहा कि मुझे नहीं देते हैं. मुझे नौकरी में जाना पड़ता है , मुझे काम धंधा में जाना पड़ता है. सोने को मुझे समय नहीं मिलता और आप दिनभर ढोलक बजाते रहते हैं. यह करते रहते हैं वह करते रहते हैं.

तो महात्मा जी ने कहा तुम भी राम नाम जपो, तुम्हें भी मिलेगा.

इसी बात को लेकर के दोनों के बीच में बहस शुरू हो गई. और इस बात की शर्त लग गई दोनों की बीच की कि आज मैं राम नाम जपता हूं, क्या आज मुझे राम जी भजन कराएंगे. मैं भोजन करूंगा ही नहीं.

बाबा जी ने कहा ठीक है?

शर्त के मुताबिक पर बाबा जी के साथ में बैठकर के राम-राम जपने लगा. उसे लगा घर जाऊंगा तो बीवी भोजन कर देगी. वह कहेगी कि घर में खाना पड़ेगा . उन्होंने मन में सोचा कि क्या करूं तो उन्होंने सोचा कि जंगल में जाकर के राम-राम सो करके जंगल में चला गया. एक पेड़ के डाली में बैठकर के राम राम जप रहा था.

वह इस चक्कर में दूर हो रहा था कि उसे कोई भोजन न कर दे.

अब आप प्रभु के लीला देखिए वहां से गांव के व्यापारियों का समूह निकल रहा था. उन्हें भी भूख लग रही थी तो उसे पेड़ के नीचे रुक गए. साथ में खाना बनाने का पूरा सामान लाए हुए थे और वहीं पेड़ के सामने. कुछ ही समय बाद उनका खाना बना करके तैयार हो गया था और वह खाना खाने ही वाले थे.

किसी ने आकर के कहा कि पीछे से डाकू आ रहे हैं. और सभी के सभी व्यापारी भी थे उनके साथ में बहुत सारे पैसे भी थे, उनके साथ में सोने चांदी के आभूषण भी थे. और यह सभी व्यापारी बिना देरी के वहां से निकले. उन्होंने निर्णय किया कि भोजन को यही छोड़ दे और यहां से चल जाए. और वे सभी के सभी व्यापारिक भोजन को छोड़कर के वहां से चले गए

वह जो गरमा गरम भोजन बंद करके वहां तैयार था. डाकू जो है वहां जाकर के दिखा तो बड़ी स्वादिष्ट जो है महक आ रही है और बड़ा अच्छा भोजन बना करके तैयार है लेकिन जिसने बनाया उन्होंने खाकर क्यों नहीं गया.

उनमें से डाकुओं के सरदार में दिमाग लगाया कि हो सकता है यह हम सभी को एक साथ करने की साजिश हो सकता है. किसी ने जहर मिला दिया हो भोजन में. तो सारे साथियों ने कहा कि बिल्कुल सरदार आप सही कह रहे हैं. ढूंढ लेते हैं कि यह किसने किया है? और वह आसपास चारों तरफ उसे इलाका को ढूंढने लगे. लेकिन उन्हें कोई देखा नहीं.

डाकुओं के सरदार ने ऊपर की तरफ देखा तो उसे पेड़ पर बैठा हुआ वह आदमी दिख गया जो राम-राम जप रहा था जो भोजन नहीं करना चाह रहा था.

डाकुओं के सरदार ने कहा यह रहा वह कलाकार जिसने साजिश की है. सरदार ने आदेश दिया उतरे इसको नीचे. उसके साथियों ने उसे आदमी को नीचे उतर के लाया. और उससे कहा कि भोजन कर तू पहले? उन्होंने कहा कि तूने इसमें जहर मिलाया है- तो उसने कहा मैं नहीं मिलाया है ?

सरदार ने कहा का करके देख, पहले तू चक- उसने कहा मैं नहीं खा सकता हूं?

क्योंकि उसने तो अंदर से प्रण ले रखा था कि मैं भोजन नहीं करूंगा. शर्त लगा रखी थी कि मैं आज खाऊंगा नहीं.

डाकुओं ने उसे गाल पर एक लात मारा और बोला खाना खा.

उसने फिर कहा मैं नहीं खाऊंगा?

डाकू के सरदार ने कहा तो जब तक नहीं खाएगा तुझे लात मरते रहेंगे, तुझे भोजन करना ही पड़ेगा, और तू खा कर दिखा किया भोजन सही है कि नहीं है.

मजबूरी में वह व्यक्ति भोजन करने लगा. और भोजन करते-करते कहने लगा कि प्रभु आपका महिमा अपरंपार है. डाकुओं के जाने के बाद वे महात्मा जी के पास दौड़ करके आए और प्रणाम किया और उसने कहा की वाकाह में राम नाम के शब्द में ताकत है. आज मैंने प्रण कर लिया था, मैं भोजन करूंगा ही नहीं लेकिन डाकुओं ने जबरदस्ती लेकिन डाकुओं ने जबरदस्ती मुझे भोजन करवा दिया.

आपने कहा था ना की राम नाम जपोगे की भोजन मिल जाएगा. तो आज राम जी ने भोजन मुझे कर दिया. शायद उन्होंने ही यह लीला रची.

बहुत छोटी सी आरजे कार्तिक की कहानी जिसका सर यह समझता है कि यह जरूरी नहीं की आपको काम धंधा छोड़कर के भगवान का नाम लेने में ही लग रहे,. आप जो काम कर रहे हैं, आप जिस व्यवसाय को कर रहे हैं, जिस काम धंधा को कर रहे हैं, आप जिस क्षेत्र में भी हो आप जो भी काम कर रहे हो. आप जो भी काम कर रहे हो करते रहिए लेकिन राम नाम से उन्हें पुकारते हैं. उनकी भक्ति में कमी मत रखिए क्योंकि उनकी भक्ति की शक्ति बहुत है और आप जिस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं यदि उनकी जरा से भी कृपा होगी तो आपका काम पल में हो जाएगा.

जहां पर वहां है वहीं परिवार है | आरजे कार्तिक की कहानी

एक बड़ी छोटी सी कहानी आरजे कार्तिक की कहानी एक इंसान की जो शहर में नौकरी करता था लेकिन वह रहने वाला गांव का था. 6-8 महीने में वह गांव में आता था. और अपने परिवार से गांव वालों से मिलकर के आता था.

और इस बार उन्हें ज्यादा समय लग गया वे 10 महीने बाद गांव लौटा. जैसे ही वह गांव में आया तो हल्ला हो गया. तो घरों घर तक यह बात फैल गई, और उसकी मां उसका इंतजार कर रही थी. गांव में दोस्तों से मिलते हुए अंत में घर पहुंचा.

मां घर के आंगन में थी तो जाकर के मन को प्रणाम किया. और बैग में से मिठाई का डिब्बा निकाल कर निकाल कर मां के हाथ में रख दिया.

मां ने कहा बेटा यह क्या है?

बेटा ने कहा-आपकी जो पसंदीदा मिठाई है वह लेकर के आया हूं.

मां की आदत होती है पूछने की कितने रुपए की है मिठाई ?

बेटे ने कहा 350 रुपए की है.

मां भड़क गई गुस्सा हो गई. इतना पैसे खर्च करने की क्या जरूरत थी देख रहा है कितना पतला दुबला हो गया है, खुद के लिए फल खरीद लिया होता, फ्रूट खरीद लिया होता, अंगूर खरीदना, सेब सेब खरीदना आम खरीद कुछ तो खाता. कितना दुबला पतला हो गया है देख शहर में रहकर.

बेटे ने कहा कि मां मैं 1212 घंटे काम करता हूं. 12 घंटे की नौकरी होती है. आप नहीं समझोगे आप मिठाई खाओ. आपके लिए लाया हूं.

पूरे घर में उसने सबको मिठाई बांट दी. उसके बाद फिर से घर से बाहर निकल गया अपने दोस्तों से मिलने के लिए. शाम को वापस आया भोजन किया. और उसके बाद जब अपने कमरे में गया बैग में से उसने एक पैकेट और छुपा कर के रखा हुआ था ले जाकर के बीवी के हाथ में रख दी.

बीवी ने कहा कि यह क्या है ?

उसने कहा कि यह चॉकलेट है?

बीवी ने पूछा कि कितने रुपए की है?

उसने कहा कि 850 रुपए की है . बहुत महंगी वाली है लेकिन कर ही पीस है. फटाफट खा लो तुम्हारे लिए दिए लाया हूं. वह बताते हुए इतना खुश था.

बीवी को गुस्सा आ गया की क्या कर रहे हो? ,

उसने कहा मैं क्या कर रहा हूं तुम मेरी बीवी हो तुम मेरे लिए स्पेशल हो, तुम मेरे लिए खास हो, तुम्हारे लिए नहीं लाऊंगा तो किसके लिए लाऊंगा.

बीवी ने कहा हद करते हो तुम्हारी जो मन है तुम्हें 300 की मिठाई के लिए कह रही थी की तुम अपने ऊपर खर्च करो. और बेटा जो है मेरे लिए 850 सो रुपए का चॉकलेट ला रहा है.

उसके पति ने तो कहा कि तुम्हारे लिए तो लाया हूं और किसके लिए लाऊंगा. तुम खाओ ना चार पीस है फटाफट.

तो पत्नी ने कहा यह सब को बांट करके नहीं मिला सकते. घर में कितने लोग हैं मां है, बापूजी है, बड़े भाई साहब है, बड़ी दीदी है, बच्चे हैं.

फिर से यह आदमी कहने लगा चार तो पीस है. किसको खिलाता है सबको बांट कर करके.

पत्नी ने कहा सब को थोड़ा-थोड़ा करके तोड़ करके खा लेते हैं. तुम्हारी मां तुम्हारा कितना ख्याल रख रही है और तुम मेरे लिए 850 सो रुपए खर्च कर रहे हैं. तुम्हारी मां तुम्हें समझ रहे की मिठाई नाल करके तुम अपने ऊपर खर्च करते . तुम अपना स्वास्थ्य अच्छा करते लेकिन तुम बीवी के लिए 850 सौ की चॉकलेट ला रहे हो.

उसे पति ने कहा कि तुम समझोगे नहीं.

बीवी ने कहा तुम नहीं समझोगे. तुम्हें इस लायक बनाया कि मुझसे शादी हो सके किसने तुम्हारा अम्मा और बाबूजी ने. जब तुम्हें ज्ञान नहीं था जब तुम अबोध बच्चे थे, पढ़ा लिखा कर तुम्हें काबिल बनाया किसने तुम्हारी मां और पिताजी ने और उनकी जगह तुम मुझे इतना बड़ा महंगा तोहफा दे रहे हो. और वह समय जब तुम्हें पता है कि घर की हालत क्या है? और यह जो चॉकलेट का डिब्बा है अब यह सुबह खुलेगा और यह जो चार पीस है उसे सब लोग मिलकर करके खाएंगे . तुम जरा सोचो कि कल हमारा बच्चा होगा, हमारे साथ में ऐसा व्यवहार करेगा तो हमें कैसा लगेगा.

बहुत छोटी सी आरजे कार्तिक की कहानी जिसका सर यह कहता है अपनों के बीच में प्यार बांटना ही परिवार कहलाता है. अपनों के लिए खुशियां लाना ही परिवार कहलाता है. यह छोटी सी कहानी जो यह बतलाता है कई लोगों का माता-पिता जो शहर में रहते हैं वे समझ में नहीं पाते. वे बच्चे जो शहर में रहते हैं जो गांव में जाकर के अपने माता-पिता को अगर जरा सा भी शहर के बारे में बताएं, उन्हें ऐसी चॉकलेट खिला दें जो शायद शहर वाले ही खा रहे हैं. तो शायद उन्हें अच्छा लगे वे कहने का तो मना करेंगे लेकिन अंदर से महसूस करेंगे कि बच्चा हमारा देखभाल करता है

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